भगवद गीता के अध्याय 2 श्लोक 27 में कहा गया है:
“जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है।”
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम अपना जीवन कैसे जीते हैं, हम सभी का अंत एक जैसा होता है – खामोशी में। अंत में, सभी को जीवन के एक मात्र सत्य का सामना करना पड़ता है। मृत्यु निश्चित है, फिर हम चाहे कोई भी हों।
जैसे पतझड़ में पुराने पत्ते नए पत्तों के आने की जगह बनाने के लिए प्रकृति के नियमानुसार सुनहरे होकर झड़ जाते हैं, ठीक उसी प्रकार जो भी इस दुनिया में प्रवेश करता है, उसका एक दिन अंत होता ही है। जैसा कि लोग कहते हैं, जीवन एक चक्र है, जहां सभी आशाएं और सपने एक कहानी मात्र हैं। इस दुनिया में हर किसी को एक भूमिका निभानी है। वे प्यार का अनुभव करते हैं, ज्ञान प्राप्त करते हैं, ज्ञान प्रदान करते हैं, यादें बनाते हैं और अपने प्रयासों से दुनिया को बेहतर स्थान बनाते हैं। अंत में, इस बात से वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हमने कौन सी कारें चलाईं, हमने कितना पैसा जमा किया और कितनी भौतिक संपत्ति हासिल की। जीवन का असल अर्थ उसमे निहित है जो हमारे जाने के बाद लंबे समय तक बना रहता है – स्थायी विरासत, प्रभावशाली कर्म, दूसरों पर हमारा सकारात्मक प्रभाव, जिन लोगों से हम प्यार करते थे, और वे यादें जिन्हें हम पीछे छोडकर गये।
कहा जाता है कि कोई व्यक्ति वास्तव में हमें छोड़कर तब तक नहीं जाता है, जब तक उनका नाम लिया जाता है, उनके गीत गाए जाते हैं, उनके शब्दों को याद किया जाता है, उनके साथ बिताए पलों को याद किया जाता है, उनकी विरासत को आगे बढ़ाया जाता है। जब तक एक भी व्यक्ति उन्हें याद करता है, तब तक वह उनके भीतर जीवित रहते हैं।
अपने दादाजी की यादों को लिखते हुए, मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि जीवन कितना अस्थिर है। एक क्षण हम यहां हैं, और अगले क्षण हम नहीं हैं। वर्तमान में जीना एक ऐसा उपहार है जिसकी हम शायद ही कभी सराहना करते हैं, हम केवल भविष्य के बारे में चिंता करते हैं जो हमारे नियंत्रण से बाहर है।
दादाजी, जिनसे मैं बहुत प्यार करता हूँ, उन्होंने एक सरल लेकिन भरपूर जीवन जिया, एक बड़े से परिवार के साथ, जिनसे वो बहुत प्यार करते थे – उनके 6 बेटे, 2 बेटियाँ, 16 पोते और पोती, और 1 परपोता है। 87 साल की उम्र में उनकी याददाश्त शानदार और दिमाग जिज्ञासु था। अपने छोटे लेकिन लंबे जीवन में, उन्होंने भारत की आजादी देखी, कोविड जैसी महामारी में वे स्वस्थ्य बने रहे, और उन्हें अपने सबसे बड़े पोते की शादी में शरीक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह किसी भी चीज और हर चीज के बारे में बात करने में हमेशा खुश रहते थे, और उनके पास हर प्रिय व्यक्ति के लिए समय होता था। वह शायद ही कभी शिकायत करते थे, और जो उनके पास था उससे संतुष्ट रहते थे। दादाजी ने जो उपदेश दिया, उसका उन्होंने पालन भी किया और वे सादगी के प्रतीक थे, वे इस बात का जीता जागता प्रमाण थे कि सरलतम चीजों में भी खुशियाँ पाई जा सकती है। वे एक सम्मानित और शहर में एक जाने-माने व्यक्ति थे, उनकी प्रतिष्ठा उनसे पहले आती थी।
दादाजी खाने के बड़े शौकीन थे। उन्होंने एक पूर्ण शाकाहारी जीवन जिया, और उन्होंने कभी भी लहसुन और प्याज के स्वाद का अनुभव नहीं किया। न ही उन्होंने कभी पान, सिगरेट, तंबाकू और शराब पी। उनमें चीजों के लिए थोड़ा कम धैर्य था, और उन्हें घर पर रहना उतना पसंद नहीं था। उन्हें हर चीज का शौक था। उनके पास अपना सामान रखने के लिए एक निजी बक्सा होता था, और विशेष अवसरों पर वो चश्मा, कुर्ता, पायजामा, सैंडल, फैंसी घड़ी और अपनी छड़ी लेकर खुद ही तैयार हो जाते थे। वह हमेशा कुछ नकदी रुपये लेकर चलते थे।
दादाजी की सबसे पुरानी यादों में से एक मेरे बचपन की याद है, जब स्कूल के रास्ते में एक छोटी सी नाली के कारण वे मुझे गोद में उठा लेते थे, जिसे मैं खुद से पार नहीं कर पाता था। कई अवसरों पर मुझे सुनाई गई यह कहानी समय के साथ कुछ धुंधली सी हो गई है, फिर भी यह मेरे दिमाग में स्पष्ट तस्वीर बनाये हुए है। दुर्भाग्य से, वे कोडक वाले दिन थे जब हमारे पास यादों को संजोने के लिए उतने पैसे नही थे।
हर छह महीने में मेरी घर की यात्राओं के दौरान मैं हर रात दादाजी के पास बैठा करता था, जहाँ हम उनके दिमाग में जो कुछ भी आता था, उसके बारे में बातें करते थे। स्वभाव से जिज्ञासु होने के कारण उनकी जिज्ञासा की कोई सीमा नहीं थी। हम आमतौर पर अलग-अलग विषयों पे विस्तारपूर्वक बातचीत करते थे – भोजन, संस्कृति, समुद्र, हवाई जहाज़, सॉफ्टवेयर, लैपटॉप, विदेश, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़ॅन, और सबसे महत्वपूर्ण – उनके जीवन के अनुभव, और उनके करीबी और बड़े परिवार के बारे में बातें करते थे। कंप्यूटर कैसे काम करता है, और बड़ी तकनीकी कंपनियों के कार्यालय कैसे दिखते हैं, उन्हें ये सब पसंद था। वे उन्हें सॉफ्टवेयर फैक्ट्री बुलाते थे, जहां मैं काम के लिए रोजाना जाता हूं। वह लैपटॉप में कुछ टाइप करके अच्छा पैसा कमाने की संभावना से हैरान थे।
“विदेश में खाने के कौन से विकल्प उपलब्ध हैं? क्या मुझे वहां भारतीय मसाले खरीदने को मिलते हैं? तुम अपने आप सब कुछ कैसे कर लेते हो? रोबोट कैसे काम करते हैं? अमेरिका यहां से कितनी दूर है? क्या हवाई जहाज़ से उड़ने में डर लगता है? क्या माइक्रोशोफ्ट तुमको एक सर्वेंट क्वार्टर और अन्य सुविधाएँ देता है?”
हम कितनी ही देर बातें करते रहें, उनके उत्सुक सवालों का कभी अंत ही नहीं होता था। वह एक के बाद एक प्रश्न तब तक पूछते रहते जब तक कि मेरी दादी उनसे सोने के लिए नहीं कहती थीं।
मेरी यादें मुझे एक कहानी की याद दिलाती हैं, जिसे दादाजी ने कई मौकों पर गर्व से मुझे सुनाया था, जिसमें उनकी सादगी और मासूमियत के बारे में पता चलता था और वे भावुक हो जाते थे, यह बटवारे के समय उनके भाई-बहनों की कहानी थी। वह बताते कि कैसे उन्हें अपनी शादी में 17 सोने की अंगूठियां मिलीं और कैसे उन्हें सब कुछ छोड़ना पड़ा। उस थोक की दुकान के बारे में जो उन्होंने और पापा ने मिलकर शुरू की थी और अब मेरे चाचा चलाते हैं। कैसे उस समय के दौरान, मेरे परिवार के पास कुछ भी नहीं था, व्यवसाय बुरी तरह से विफल हो रहा था और सब कुछ एक साथ लेकर चलने में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। वो बताते थे कि बंटवारे में उनके हिस्से वो दुकान कर दी गई थी जिसको लोग अशुभ मानते थे, पर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्हें जो कुछ भी दिया गया, उसे उन्होंने इकट्ठा करके एक साम्राज्य खड़ा कर दिया। इसके साथ उनका गौरव और भावनात्मक जुड़ाव शब्दों से परे था, जिसे हम आज भी संजोए हुए है।
जब मैं कनाडा, और बाद में अमेरिका में रहने गया, तो व्हाट्सएप वीडियो कॉल ने हमारे बीच की दूरी को कम कर दिया, जिससे मुझे उनके दूर होने का अहसास कम हुआ, और मुझे खुशी है कि ऐसा हो सका। “आप क्या कर रहे हैं, दादाजी? “, वह सवाल था जो मैं अक्सर फोन पर पूछता था। उनका जवाब हमेशा मेरी उम्मीदों के अनुरूप होता था। वह कुछ ना कुछ पढ़ते रहते थे जैसे रामायण, गीता, समाचार पत्र, और भी बहुत कुछ। पढ़ने के लिए उनका उत्साह अलग ही था और उनकी उम्र को देखते हुए यह असाधारण था।
हमारी बातचीत में जब वो अपने अनुभवों के बारे में बताते थे, वह हवाई जहाज में सवार न होने के बारे में अक्सर पछतावा करते थे। वह हमेशा मानते थे कि उन्हें इसका अनुभव करने में बहुत देर हो चुकी है। भले ही यह सुनने में कितना ही सपने जैसा क्यों न लगे, दिल की गहराइयों में, मैं हमेशा चाहता था कि वह मेरी शादी में आयें, और अपने परपोते को गोद में खेलाएं। आखिरकार, एक आदमी सपना देख सकता है, है ना। पिछले साल मेरी मनपसंद जगह पर शादी के दौरान, जब उनका स्वास्थ्य बेहतर था, तो मैंने उनके, दादी और चाचा जी के साथ उनके इस सपने को पूरा करने के लिए उदयपुर की फ्लाइट टिकट बुक की। वे उत्साहित और डरे हुए थे। उपर उड़ने का मजेदार अहसास, और वहां कुछ अजीब होने का भय उन्हें अभिभूत कर रहा था। एक फ्लाइट में एस्केलेटर नहीं था, और उन्होंने उनसे सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए कहा। जबकि वह ऐसा करने में शारीरिक रूप से सक्षम थे, लेकिन इससे बड़ी परेशानी होती। अंत में काफी समझाने-बुझाने के बाद वे उन्हें व्हील चेयर के साथ हाथ से उठाकर ले गए।
मुझे वे पांच दिन अच्छी तरह याद हैं, और हमारी हर बातचीत जैसे कि कल ही की बात हो – उन्होंने पटना एयरपोर्ट को मुंबई की तुलना में कैसे जीरो रेट किया, वह कितने खुश थे, अपने बड़े पोते की शादी देखने की उनकी इच्छा और उनकी आवाज़ में चिंता थी कि क्या उन्हें फिर कभी ऐसा अनुभव करने का मौका मिलेगा। जिस पर, मैंने उन्हें आश्वासन दिया था कि उनके कई पोते हैं और वे सभी उनके सपनों को पूरा करेंगे। लेकिन मैं नही जानता था कि भगवान की क्या इच्छा थी। वो पल इतने शानदार थे की मैं उसे कैमरे में रिकॉर्ड करने से खुद को नहीं रोक सका। वो वीडियो मेरे पास उनकी एकमात्र यादें हैं।
लोगों से बातचीत करते वक्त वो अक्सर कहते थे, “मेरा पोता का शादी है। बहुत दूर से कर रहा है। पता नहीं हम जा पाएंगे या नहीं।”। मेरी शादी के दिन, जब वह विंटेज लाल कार में मेरे बगल में बैठे थे, तब वे अपनी पसंदीदा कपड़े पहने थे जो पीला कुर्ता, सफेद पैंट और वेस्टकोट, और स्टाइलिश भूरे रंग के लोफर्स थे, उन्होंने पूरी बरात में बिना रुके हनुमान चालीसा का जाप करते हुए डांस किया। उनके जोश ने सभी को हैरत में डाल दिया। पूछने पर उन्होंने जवाब दिया, “गोलू बोला की दादाजी आपको हमारी शादी में खूब डांस करना है। मेरा हाथ दर्द कर गया, लेकिन हम हिम्मत नही हारे”।
यह सबसे खुशी की बात है, और अब तक की सबसे बेहतरीन याद मेरे पास है। जिसे मैं हमेशा के लिए अपने दिल के करीब रखूंगा।
मैंने 9 जून, 2023 को दादाजी को हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा और 500k लोगों में से 1 को होने वाली बहुत दुर्लभ बीमारी बल्बर पाल्सी के कारण खो दिया, दोनों ही अपने आप में घातक और जानलेवा हैं, लेकिन दोनों बीमारियाँ मिलकर उनकी उम्र के हिसाब से उनके लिए एक घातक संयोजन साबित हुई और वह हमें छोड़कर चले गए। वे संयुक्त परिवार में अपने प्रियजनों से घिरे रहे, जैसा की वह हमेशा चाहते थे। दादी कहती हैं, ”पता नहीं कौन सा अजीब बुखार हुआ जो उनको उड़ा कर ले गया।”। 67 साल साथ रहने के बाद उनकी अनुपस्थिति ने दादी को अकेला कर दिया, और कई भावनात्मक रूप से अकेले पड़ गये। उन्होंने अखबार और भगवद गीता पढ़ते हुए अपने अंतिम दिन तक अपने तेज दिमाग और दयालुता को बनाए रखा, और अपनी अस्पष्टत आवाज के कारण वे लिखकर बातचीत करते रहे। अपनी अंतिम सांस से कुछ दिन पहले, वह डोरी वाली नई पैंट मांग रहे थे। मेरे चाचा को कह रहे थे कि, रितेश, हमारे लिए वो नई पैंट ला देना। उनके जीवन के अंतिम सात सप्ताह बड़ी बेचैनी से भरे थे। गले की मांसपेशियों में कमजोरी के कारण उन्हें खाने पीने में कठिनाई होती थी, जिससे उन्हें खाने-पीने में खांसी उठने लगती थी। वे मुश्किल से खा पाते थे और कम मात्रा में तरल खाना खाते थे, जो उनके शरीर की आवश्यकता से बहुत कम था, जिससे वह कमजोर होते चले गये। जब भी मेरी दादी कुछ खातीं, तो वे अपनी उँगलियों से मुँह की ओर खाने के लिए इशारा करते थे जो उनकी खाने के लिए तेज इच्छा को बताता था। वह लिखते थे, “मुझे आम का रस दे दो”, “मुझे बेल (वुड एप्पल) का रस दे दो”, “मैं बिस्किट खाना चाहता हूँ”।
सात सप्ताह पहले हमें उनकी बीमारी के बारे में पता चला, हम जानते थे कि अब वे हम सबको छोड़कर जाने वाले हैं। यह बात मुझे अंदर से खाये जा रही थी, खासकर पिछले कुछ दिन, जो बेचैनी से भरे हुए थे। लगभग हर रात सोने से पहले मैं दादाजी से वीडियो कॉल के जरिए बात करता था। यह एक सुकून देने वाली दिनचर्या थी, और जैसे ही कॉल कनेक्ट होती, वह मुझे तुरंत पहचान लेते थे। हालाँकि उनकी आवाज़ स्पष्ट नहीं थी, फिर भी मैं उनकी बातें समझ सकता था। मैं पूछता था, “आप कैसे हैं, दादाजी”। उनका जवाब होता “ठीक नही है”, और अपनी दवाओं के काम न करने की निराशा व्यक्त करते थे। उस स्थिति में भी, उन्हें पढना अच्छा लगता था। बेहतरीन और आधुनिक चिकित्सा साधनों के बावजूद, हम कुछ भी नहीं कर सके।उनके इलाज के लिए मैं जो कुछ भी कर सकता था मैंने किया। पूरा इंटरनेट खंगालने और सारे संपर्कों से पूछने के बावजूद कुछ नहीं मिला। इसका कोई इलाज नहीं था। जो भी दुर्लभ और रिसर्च में जारी इलाज की जा सकती थी, डॉक्टरों ने उनकी उम्र में उसकी सलाह नही दी।
और इन्हीं सब चीजों के बीच हमने उन्हें खो दिया। यह सब बहुत तेजी से हुआ, जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी। कुछ देर पहले वे यहीं थे, और फिर वह चले गये – एक चुटकी की तरह। उनके जाने के 6 दिन बाद, मुंबई के एक प्रतिष्ठित न्यूरो अस्पताल ने मुझसे संपर्क किया, जिन्होंने स्टेम सेल पर रिसर्च किया था, जो उनकी बीमारी का इलाज कर सकता था।
उन्हें हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार दाह-संस्कार के लिए ले जाया गया, जिसमें लोग केवल “राम नाम सत्य है” का जप कर रहे थे”, क्योंकि उनका यह कहना था कि अंतिम संस्कार उत्सव मनाने जैसा नहीं है। खाने के प्रति उनके प्रेम को दर्शाने के लिए हमने उनके कपड़े को आम और सेब से सजाया। उनके जाने के बाद हमें आकस्मिक रूप से उनकी डायरी मिली, जिसमें पूरे परिवार सहित उनके जीवन का हर पहलू लिखा था – वे कहाँ गए, किससे मिले, क्या किया, उनका दिन कैसा बीता, उनका स्वास्थ्य कैसा था, उन्होंने कौन सी दवाएँ लीं, कौन घर आया, कौन किसके घर गया, वगैरह वगैरह। किसी एक डायरी के एक पन्ने पर लिखा है – “10 अप्रैल, 2022: आज गोलू दिल्ली से आया है…”। वह इसे छिपा कर रखते थे, और कभी दादी को भी उसे पढ़ने नहीं दिया। बाद में पापा ने बताया कि उन्हें लिखने का जुनून था, और वे पाँच दशकों से अधिक समय से व्यक्तिगत डायरी लिख रहे थे। दादाजी को डॉक्टरों के यहाँ जाना कुछ ख़ास पसंद नहीं था। अस्पताल और सुईयों से उन्हें गहरी भय और बेचैनी होती थी। जब भी वह डॉक्टर के पास जाते थे, प्रश्नों की एक लिखित सूची लेकर जाते थे, और आवश्यक उत्तर प्राप्त करने के लिए इसे डॉक्टर को सौंप दिया करते थे। वो सभी मेडिकल रिकॉर्ड्स पर खुद ही हिंदी या अंग्रेजी में आवश्यकतानुसार हस्ताक्षर किया करते थे। वह अपने अंतिम दिन तक शारीरिक रूप से सक्रिय थे, अपने हर दिन सुबह 5 बजे नहाने के नियम का ईमानदारी से पालन करते थे।
उन्होंने अपना जीवन शानदार तरीके से पूरा खुलकर जिया, और उनकी इच्छा थी कि वो और भी कई सालों तक उसी तरीके से जीते रहे। वो और अधिक जीना, और अधिक देखना, और अधिक अनुभव करना, और अधिक प्यार करना, और अधिक देखभाल करना और अधिक खाने का आनंद लेना चाहते थे। अपने जीवन के अंतिम कुछ दिनों में, उन्होंने फूड पाइप के बारे में विस्तार से पूछताछ की, इसको लगाने की तकनीक, इससे होने वाली संभावित असुविधा, और इसके रोजमर्रा के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
दादाजी के निधन ने एक खालीपन छोड़ दिया है, एक खालीपन जो मेरे भीतर गूँजता है – जिसे फिर कभी नहीं भरा जा सकता, और अगर वो खालीपन भरा जा सकता हो, तो भी मैं इसे भरना नहीं चाहूँगा। क्योंकि वह मेरे जीवन का एक विशेष हिस्सा है, जिसे मैं अपने समय के अंत तक संजो कर रखूंगा। दादाजी के जीवन ने मुझे सिखाया कि सादगी, विनम्रता, दया, सहानुभूति और जमीन से जुड़े स्वभाव का बहुत महत्व है। कई विशेषताएं जो मुझे विरासत में मिली हैं, उनमें से सबसे गहरी हैं – खाने का एक जैसा शौक, पढ़ने और लिखने की तीव्र इच्छा, वही “मकर” राशिफल, वही रंग रूप, और वही कभी न खत्म होने वाली जिज्ञासा। यदि मैं आने वाली पीढ़ियों को उनकी विरासत सौंप सका तो यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। तब मैं गर्व से कह सकूंगा कि मैंने एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जिया है। अगर उनके जाने से मैंने एक मूल्यवान सबक सीखा है, तो वह है अपने प्रियजनों के साथ समय बिताना और यादें बनाना; हो सकता है आप उन्हें फिर कभी न देख पाएं। काम, पैसा, बाकी सब-इंतजार कर सकते हैं।
मुझे आपकी बहुत याद आती है, दादाजी। आप हमें बहुत जल्दी छोड़कर चले गए। जब मैं आपके कमरे में जाता हूं तो मुझे एक असामान्य खालीपन दिखाई देता है, एक परेशान करने वाला खालीपन का भाव, जैसे कुछ गायब है, कुछ ऐसा जिसे बदला नहीं जा सकता। मेरे विचारों में आपके बिना एक दिन भी नहीं बीता। ऐसी अनगिनत चीज़ें हैं जो मैं चाहता हूँ कि मैं आपसे बातचीत कर पाता। यह विश्वास करना कठिन है कि अब आप हमारे बीच नहीं हैं; मैं अब आपको एक बार और नहीं देख पाउँगा, एक बार फिर आपकी आवाज नही सुन पाउँगा, और आप मुझसे एक और रोचक प्रश्न नही पूछेंगे। अलविदा दुःखद होती है, जिसे मैं वास्तव में कभी नहीं जानता था, जब तक कि मृत्यु ने आपको मुझसे दूर नहीं कर दिया। मुझे सदा इस बात का दुख रहेगा कि मैं आपसे आखिरी बार नहीं मिल पाया।
ॐ शांति, दादाजी ! 😭